"बकरीद: दिल से कहो कुर्बानी मुबारक हो"

"बकरीद की असली तालीम: नफ्स की कुर्बानी" हर साल जब ज़ुलहिज्जा का महीना आता है, तो मुसलमानों के दिलों में एक रूहानी सा सुकून उतर आता है। एक ऐसा एहसास, जो खुदा की मोहब्बत और इबादत से भरा होता है। बकरीद यानी ईद-उल-अज़हा, वो मुबारक दिन है जब एक बाप अपनी सबसे प्यारी चीज़, अपने बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बान करने को तैयार हो गया — और यही है इस त्योहार की रूह। क़ुरबानी की हकीकत बकरीद सिर्फ गोश्त खाने या नए कपड़े पहनने का नाम नहीं है। ये त्योहार है खुदा से मोहब्बत की इंतिहा का, अपनी पसंदीदा चीज़ को रब की राह में कुर्बान करने का। हज़रत इब्राहीम अ.स. ने जब अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे हज़रत इस्माईल अ.स. को ज़िबह करने का इरादा किया, तो अल्लाह ने उनकी सच्ची नीयत देख कर जन्नत से एक दुम्बा भेज दिया और इस अमल को क़यामत तक के लिए मुसलमानों के लिए मिसाल बना दिया। आज हम जानवर की कुरबानी करते हैं, मगर असल कुरबानी वो होती है जो हम अपने अंदर करते हैं — अपने नफ्स की, घमंड की, नफ़रत की और दुनियावी चाहतों की। त्यौहार की रौनक बकरीद की सुबह की रौनक कुछ और ही होती है। हर घर में ग़ुस्ल, नया लिबास, इ...