"बकरीद: दिल से कहो कुर्बानी मुबारक हो"
"बकरीद की असली तालीम: नफ्स की कुर्बानी"
हर साल जब ज़ुलहिज्जा का महीना आता है, तो मुसलमानों के दिलों में एक रूहानी सा सुकून उतर आता है। एक ऐसा एहसास, जो खुदा की मोहब्बत और इबादत से भरा होता है। बकरीद यानी ईद-उल-अज़हा, वो मुबारक दिन है जब एक बाप अपनी सबसे प्यारी चीज़, अपने बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बान करने को तैयार हो गया — और यही है इस त्योहार की रूह।
क़ुरबानी की हकीकत
बकरीद सिर्फ गोश्त खाने या नए कपड़े पहनने का नाम नहीं है। ये त्योहार है खुदा से मोहब्बत की इंतिहा का, अपनी पसंदीदा चीज़ को रब की राह में कुर्बान करने का। हज़रत इब्राहीम अ.स. ने जब अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे हज़रत इस्माईल अ.स. को ज़िबह करने का इरादा किया, तो अल्लाह ने उनकी सच्ची नीयत देख कर जन्नत से एक दुम्बा भेज दिया और इस अमल को क़यामत तक के लिए मुसलमानों के लिए मिसाल बना दिया।
आज हम जानवर की कुरबानी करते हैं, मगर असल कुरबानी वो होती है जो हम अपने अंदर करते हैं — अपने नफ्स की, घमंड की, नफ़रत की और दुनियावी चाहतों की।
त्यौहार की रौनक
बकरीद की सुबह की रौनक कुछ और ही होती है। हर घर में ग़ुस्ल, नया लिबास, इत्र और मस्जिद की तरफ़ जाने की तय्यारी होती है। एक जैसी सफ में खड़े हो कर ईद की नमाज़ अदा की जाती है, जिसमें कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, सब खुदा के बंदे होते हैं। नमाज़ के बाद लोग एक-दूसरे को गले लगाकर "ईद मुबारक" कहते हैं, दुआएं देते हैं।
उसके बाद कुर्बानी का वक़्त आता है — हर घर में जानवर ज़िबह किया जाता है, और उसका गोश्त तीन हिस्सों में तक्सीम होता है:
1. एक हिस्सा खुद के लिए,
2. एक रिशतेदारों और दोस्तों के लिए,
3. और एक हिस्सा गरीबों और मोहताजों के लिए।
यही है असल इंसानियत — खुदा की दी हुई नेमत को दूसरों के साथ बांटना।
समाज में इसका असर
बकरीद सिर्फ मुसलमानों का त्योहार नहीं, ये एक पैग़ाम है इंसानियत का, बराबरी का और मोहब्बत का। इस दिन बहुत से लोग गरीबों को खाना खिलाते हैं, बेसहारा बच्चों में मिठाइयां बांटते हैं, और खुदा की मखलूक के साथ रहम का सुलूक करते हैं।
इस दिन अगर कोई भूखा सो जाए तो हमारी कुर्बानी अधूरी है। अगर किसी का चेहरा मुस्कराए नहीं, तो हमारी ईद अधूरी है। बकरीद हमें सिखाती है कि कुर्बानी सिर्फ जानवर की नहीं, बल्कि दिल की भी होनी चाहिए।
आज के दौर में बकरीद
आज के इस मशीनी दौर में भी बकरीद की अहमियत कम नहीं हुई है। लोग सोशल मीडिया पर मुबारकबाद भेजते हैं, ऑनलाइन कुर्बानियां कराते हैं, लेकिन असल बात अब भी वही है — इख़लास, नियत और अल्लाह की रज़ा।
बकरीद का मतलब है कि हम खुदा से सच्चा रिश्ता कायम करें और उसकी मखलूक से मोहब्बत करें। क्योंकि अगर दिल साफ़ नहीं, नीयत पाक नहीं — तो हमारी कोई कुर्बानी क़बूल नहीं।
आख़िरी बात
बकरीद का मतलब सिर्फ जानवर की गर्दन पर छुरी चलाना नहीं, बल्कि अपने अंदर के हैवान को मारना है। अपनी नफ़रत, अपने ईगो, अपनी खुदगरज़ी और अपनी ज़बान की तल्ख़ी को कुर्बान करना ही असल ईद है।
तो आइए इस ईद पर हम सब ये वादा करें कि इस साल की कुर्बानी सिर्फ रस्म नहीं होगी — बल्कि हमारी ज़िंदगी की सोच, हमारे किरदार और हमारे रिश्तों में एक खूबसूरत तब्दीली का सबब बनेगी।
आपको और आपके पूरे घराने को दिल की गहराइयों से ईद-उल-अज़हा मुबारक!
दुआ है कि अल्लाह हर घर में खुशहाली, हर दिल में मोहब्बत और हर रोज़ी में बरकत अता फरमाइए
सुम्मा आमीन



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