"मध्य-पूर्व में सुलगता संघर्ष: ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ता टकराव"







🌍 ईरान-इज़राइल टकराव: क्या मध्य-पूर्व एक और युद्ध की ओर बढ़ रहा है?


पिछले कुछ दिनों में ईरान और इज़राइल के बीच जो घटनाएं घटी हैं, उन्होंने पूरी दुनिया की नज़रें एक बार फिर से मध्य-पूर्व पर टिका दी हैं। मिसाइल हमले, जवाबी एयरस्ट्राइक, नागरिकों की मौत और राजनयिक प्रयासों के असफल संकेत—यह सब एक बड़े संघर्ष का संकेत दे रहे हैं। क्या ये हालात तीसरे विश्व युद्ध की आहट हैं या यह समय रहते थम जाएंगे?



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🔥 कैसे शुरू हुआ तनाव?


बीते हफ्ते ईरान ने दावा किया कि इज़राइली एजेंसियों ने उसके कुछ परमाणु वैज्ञानिकों और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। इसके जवाब में ईरान ने इज़राइल पर ड्रोन और मिसाइल हमले शुरू कर दिए।

इज़राइल ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए तेहरान, इस्फ़हान और शिराज़ जैसे शहरों में ईरान के मिसाइल ठिकानों पर हवाई हमले किए। यह पहली बार नहीं है जब दोनों देशों के बीच ऐसा टकराव हुआ हो, लेकिन इस बार की स्थिति कहीं अधिक गंभीर और व्यापक मानी जा रही है।






🧨 हमलों में क्या हुआ?


ईरान ने 100 से अधिक मिसाइलें इज़राइल के विभिन्न शहरों पर दागीं, जिसमें हाइफ़ा, तेल अवीव, और बीयरशेवा शामिल हैं।


इज़राइल ने अपने आयरन डोम डिफेंस सिस्टम के ज़रिए अधिकांश मिसाइलों को रोक लिया, लेकिन कुछ मिसाइलें रिहायशी इलाकों तक पहुँच गईं।


जवाबी कार्रवाई में इज़राइल ने ईरान के रक्षा मंत्रालय के डिपो, रॉकेट फैक्ट्री, और सैन्य संचार केंद्रों को निशाना बनाया।



इन हमलों में अब तक ईरान में लगभग 600 लोगों की जान जा चुकी है और इज़राइल में भी 20 से अधिक मौतें हुई हैं। कई अस्पतालों और स्कूलों को भी क्षति पहुँची है, जिससे मानवाधिकार संगठनों ने गहरी चिंता जताई है।



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🏛️ कूटनीतिक प्रयास विफल क्यों हो रहे हैं?


संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, चीन, रूस, और संयुक्त राज्य अमेरिका ने दोनों देशों से शांति की अपील की है।

लेकिन ईरान ने साफ़ कहा है कि जब तक इज़राइल अपनी “आक्रामक कार्रवाई” नहीं रोकता, तब तक परमाणु वार्ता या किसी तरह की शांति-वार्ता संभव नहीं।


वहीं इज़राइल के प्रधानमंत्री ने कहा है कि यदि ईरान ने अपनी गतिविधियाँ बंद नहीं कीं, तो यह एक "दीर्घकालिक युद्ध" में बदल सकता है।


संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी तक किसी भी पक्ष में सीधा हस्तक्षेप नहीं किया है, लेकिन खबरों के मुताबिक वॉशिंगटन स्थिति पर करीब से नजर रखे हुए है और एक विशेष सैन्य बैठक की योजना बना रहा है।






📈 वैश्विक असर


यह संघर्ष केवल दो देशों तक सीमित नहीं है। इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं:


1. तेल की कीमतों में उछाल


होर्मुज़ की खाड़ी, जहाँ से विश्व का 20% कच्चा तेल गुजरता है, तनावग्रस्त है। अगर वहां व्यापार प्रभावित होता है तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है।




2. अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा


अगर यह युद्ध आगे बढ़ा तो इसमें हेज़बोल्लाह (लेबनान), सीरिया, और अन्य इस्लामिक संगठन भी शामिल हो सकते हैं। इससे मध्य-पूर्व में बड़े पैमाने पर युद्ध छिड़ने की आशंका है।




3. मानवाधिकार संकट


अस्पतालों, स्कूलों और आवासीय इलाकों पर हो रहे हमलों से नागरिकों की सुरक्षा खतरे में है, जिससे संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसियां अलर्ट पर हैं।






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📜 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


ईरान और इज़राइल के बीच यह दुश्मनी 1979 की ईरानी इस्लामी क्रांति के बाद से शुरू हुई, जब ईरान ने इज़राइल को एक “अवैध राज्य” घोषित कर दिया।

इसके बाद से ईरान का उद्देश्य इज़राइल के वजूद को चुनौती देना रहा है और इज़राइल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को एक सीधा खतरा मानता है।


इसी वजह से पिछले दो दशकों में इज़राइल ने कई बार ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों और ठिकानों पर हमले किए हैं—प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से।



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 आगे क्या हो सकता है?


फिलहाल, परिस्थितियाँ बेहद नाजुक हैं। यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई तुरंत हस्तक्षेप नहीं होता, तो यह संघर्ष एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध का रूप ले सकता है।


हालांकि कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार क़तर, तुर्की और संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत गुप्त रूप से दोनों देशों के बीच बैक-चैनल डिप्लोमेसी का प्रयास कर रहे हैं।



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✅ निष्कर्ष


ईरान और इज़राइल का यह संघर्ष अब केवल सैन्य नहीं, बल्कि राजनीतिक, धार्मिक और मानवीय संकट में बदलता जा रहा है। जहां एक ओर ये दोनों देश अपनी-अपनी “राष्ट्रीय सुरक्षा” की दुहाई दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आम नागरिकों की ज़िंदगी दांव पर लगी है।


विश्व समुदाय को अब केवल अपीलें नहीं, बल्कि ठोस राजनयिक हस्तक्षेप की ज़रूरत है। वरना यह संघर्ष पूरे विश्व को अस्थिरता और हिंसा की ओर धकेल सकता है।





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