> ईद-उल-अज़हा: कुर्बानी, मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम







🌙 ईद-उल-अज़हा — कुर्बानी, ख़ुलूस और मोहब्बत का त्‍योहार


ईद-उल-अज़हा, जिसे आम बोलचाल में बकरीद कहा जाता है, मुसलमानों का एक निहायत मुक़द्दस (पवित्र) और रूहानी (आध्यात्मिक) त्‍योहार है। ये त्‍योहार हमें न सिर्फ हज़रत इब्राहीम अ.स की वफादारी की याद दिलाता है, बल्कि हमें ये भी सिखाता है के अल्‍लाह की राह में सबसे प्यारी चीज़ कुर्बान करनी पड़े तो भी हम पीछे ना हटें।



✨ ता'रीख़ (इतिहास) की रौशनी में


हज़रत इब्राहीम अ.स. ने ख्वाब में देखा के वो अपने बेटे, हज़रत इस्माईल अ.स. की कुर्बानी कर रहे हैं। उन्होंने बिना किसी हिचक के अल्लाह का हुक्म मान लिया और बेटे को ले गए कुर्बानी के लिए। जब उन्होंने अपनी नियत पर अमल करना चाहा, तो अल्लाह तआला ने उनकी सच्चाई और खालिस नीयत को क़ुबूल फरमाया और एक दुम्बा (भेड़) भेजकर इस्माईल अ.स. को बचा लिया।


इस वाक़े की याद में हर साल मुसलमान पूरी दुनिया में ईद-उल-अज़हा मनाते हैं और कुर्बानी देते हैं।






🐐 कुर्बानी का असल मक़सद


कुर्बानी सिर्फ जानवर ज़बह (काटना) करने का नाम नहीं, बल्के ये एक तर्ज-ए-ज़िंदगी है। ये हमें ये सिखाती है कि हम अपने नफ़्स, अपनी खुदगर्जी, अपने ग़ुस्से और अपने घमंड को भी कुर्बान करें।


आज के दौर में असली कुर्बानी वो है, जब इंसान अपनी आरामतलबी छोड़कर दूसरों के लिए कुछ करे। जब वो गरीब के चूल्हे में रोटी का इंतज़ाम करे, जब वो यतीम के सर पर हाथ रखे, जब वो किसी का दर्द बांटे।





🕌 ईद की सुबह — इबादत और शुकराना


ईद के दिन मुसलमान नए कपड़े पहनकर, इतर लगाकर, पाकीज़गी के साथ ईदगाह या मस्जिद पहुंचते हैं और ईद की नमाज़ अदा करते हैं। नमाज़ के बाद गले मिलते हैं, एक-दूसरे से ईद मुबारक कहते हैं, और मोहब्बतों का पैग़ाम फैलाते हैं।


उसके बाद कुर्बानी अंजाम दी जाती है। गोश्त के तीन हिस्से किये जाते हैं —



1. एक अपने लिए



2. एक अहबाब व रिश्तेदारों के लिए



3. और एक हिस्सा गरीबों व ज़रूरतमंदों के लिए




यही है इस दिन की रूह — मोहब्बत, तक़सीम, और इंसानियत।





💡 आज के ज़माने में ईद का पैग़ाम


आज जहां हर तरफ़ खुदगर्जी, तंगदिली और नफरत फैली हुई है, वहीं ईद-उल-अज़हा हमें ये याद दिलाती है के असली कामयाबी अपने अंदर की बुराइयों को कुर्बान करने में है।


ये त्‍योहार सिर्फ जानवर की कुर्बानी नहीं, बल्कि अपने अहम, लालच और नफ़रत को छोड़कर एक बेहतर इंसान बनने की तरबियत देता है।






📢 नतीजा (निष्कर्ष)


ईद-उल-अज़हा महज़ एक मजहबी रस्म नहीं, बल्कि एक सबक है — वफादारी का, अल्लाह की रज़ा पर राज़ी रहने का, और इंसानियत की खिदमत करने का।


आइए इस ईद पर हम सब ये वादा करें कि हम न सिर्फ़ जानवरों की कुर्बानी देंगे, बल्कि अपने नफ़्स को भी अल्लाह की राह में पेश करेंगे, मोहब्बतें फैलाएंगे, और एक दूसरे के लिए आसानियाँ पैदा करेंगे।


ईद-उल-अज़हा मुबारक हो 


🌙✨ आज ईद-उल-अज़हा का मुबारक दिन है — वो दिन जो हमें ख़ालिस नीयत, कुर्बानी और इंसानियत का पैग़ाम देता है।


आइए इस ईद पर सिर्फ़ जानवर नहीं, अपने अंदर के घमंड, नफरत और खुदगर्जी को भी कुर्बान करें।


अल्लाह से दुआ है कि वो हमारी कुर्बानियों को कबूल फरमाए और दुनिया में अमन व मोहब्बत फैलाए।


🤲 ईद मुबारक!


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