"Her Silence Was Never Weakness"


 




(Women Empowerment and Society)


एक वक़्त था जब औरत का नाम सिर्फ़ चूल्हे-चौके, पर्दे और परायों की अमानत के साए में जाना जाता था। उसकी हँसी दबा दी जाती थी, उसकी उड़ान से पहले ही पर कतर दिए जाते थे। मगर आज वक़्त बदल रहा है, और उस बदलाव की सबसे खूबसूरत तस्वीर "नारी सशक्तिकरण" है।


नारी केवल एक शरीर नहीं, वह संवेदनाओं की चलती-फिरती किताब है। उसकी खामोशी में इतिहास दफ़्न हैं, और उसकी आँखों में वो जज़्बा है जो पूरे समाज को नई दिशा दे सकता है।


👣 समाज की भूमिका


कोई भी बदलाव अकेले संभव नहीं होता। समाज को जब तक नारी को केवल सहनशीलता की मूर्ति मानने की आदत रहेगी, तब तक सशक्तिकरण अधूरा रहेगा। नारी को बराबरी का हक़ देना, उसकी सोच और उसके सपनों को मान्यता देना — यही सच्चे मायनों में समाज की परिपक्वता है।


लेकिन अफ़सोस, कई जगहों पर आज भी लड़की पैदा होते ही चेहरे मुरझा जाते हैं, उसकी पढ़ाई को बोझ समझा जाता है, और शादी को ही उसका आख़िरी लक्ष्य माना जाता है। क्या सशक्तिकरण सिर्फ़ नौकरी तक सीमित है? क्या आर्थिक स्वतंत्रता ही आख़िरी मंज़िल है?



नहीं।

सशक्तिकरण का अर्थ है — चुनने की आज़ादी।


उसे तय करने दो कि वो क्या बनना चाहती है — इंजीनियर, लेखिका, मां, खिलाड़ी या फिर घर में रहकर अपने परिवार को संभालने वाली गृहिणी। हर रूप में वो सशक्त है, अगर फ़ैसला उसका खुद का हो।


🌱 बदलाव की शुरुआत कहाँ से हो?


बदलाव घर से शुरू होता है। जब एक पिता अपनी बेटी को बेटों से बेहतर समझे, जब भाई उसकी इच्छाओं को अहमियत दे, जब पति उसकी खामोशी को सुने — तभी सशक्तिकरण घर की दीवारों से निकलकर समाज की जड़ों तक पहुंचेगा।


स्कूलों में, पाठ्यपुस्तकों में, फिल्मों और विज्ञापनों में — हर जगह नारी को सम्मान के साथ दिखाना चाहिए, न कि केवल एक "object" बनाकर। जब छोटी बच्ची को उसकी सोच और सवाल पूछने की छूट मिलेगी, तब जाकर वो समाज को बदलने वाली नारी बन पाएगी।


💪 कुछ प्रेरणादायक उदाहरण


आज की दुनिया में कई महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने ना केवल रूढ़ियों को तोड़ा, बल्कि समाज की सोच भी बदली। कल्पना चावला ने अंतरिक्ष में उड़ान भरी, मैरी कॉम ने पंचों से दुनिया हिला दी, और मलाला ने किताब उठाकर दुनिया की आंखें खोल दीं।


लेकिन सिर्फ़ नामी चेहरे ही नहीं, हर गली-मोहल्ले में कोई न कोई ऐसी औरत ज़रूर है जो बिना तामझाम के अपनी ज़िंदगी के लिए, अपने परिवार के लिए, और अपनी पहचान के लिए लड़ रही है।



💫 असली सशक्तिकरण क्या है?


सशक्तिकरण केवल भाषणों का विषय नहीं, यह हर दिन की एक चुप सी क्रांति है। जब एक महिला अपने हक़ की बात करती है, जब वो "ना" कहना सीखती है, जब वह अपने दर्द को कमज़ोरी नहीं, हिम्मत बनाती है — वहीं से असली सशक्तिकरण शुरू होता है।


उसे फूल मत समझो जिसे मुरझा दो, वो चट्टान भी है जो तूफ़ानों से टकरा सकती है। उसके आंचल में छांव भी है और आंधी भी। अब वक्त है कि समाज उसे 'कमज़ोर' नहीं, 'मुख्यधारा' का हिस्सा माने।



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🔚 निष्कर्ष


नारी सशक्तिकरण सिर्फ़ नारी के लिए नहीं, समाज के हर हिस्से के लिए ज़रूरी है। एक शिक्षित, आत्मनिर्भर और आत्मसम्मानी महिला एक पूरे परिवार, समुदाय और आने वाली पीढ़ियों को बेहतर बना सकती है।


आइए, अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाएं — चाहे एक पिता, एक शिक्षक, एक भाई या एक नागरिक बनकर। औरत को आगे बढ़ने दीजिए, कंधे से कंधा मिलाकर चलने दीजिए — क्योंकि जब एक औरत सशक्त होती है, तो पूरा समाज मजबूत होता है।






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